भारत के प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी जी का स्वदेशी वस्तुओं को बढ़ावा देने वाला वक्तव्य सुना तो प्रसंन्नता हुई। भारत देश का प्रधानमंत्री जब स्वदेशी वस्तुओं के उपयोग की बात करता है तो यह बात स्पष्ट हो जाती है कि भारत का भविष्य उज्जवल है।
जब बात स्वदेशी की चल ही रही है तो हम अपनी स्वदेशी गायों की बात भला क्यों न करें? भारत की देसी गायें भी स्वदेशी हैं। इस लेख में हम भारत की देसी गायों को स्वदेशी गाय कहते हुए हर्षित महसूस कर रहे हैं। आज भारत का किसान गौपालक अंग्रेजी गौ की नहीं बल्कि स्वदेशी गायों की बात करेगा। प्रधानमंत्री जी आपके उद्घोष ने सबके अंदर नई स्फुरणा का संचार कर दिया है। भारत ने आज नई करवट ली है। स्वदेशी वस्तुओं के उत्पादन से भारत का किसान समृद्ध होगा।
अगर हमनें वर्तमान नहीं संभाला तो भविष्य अंधकारमय होगा
प्रधानमंत्री जी हम आज आपसे इसके साथ–साथ कुछ और उम्मीद भी कर रहे हैं। हमारा निवेदन है कि आप भारत में क्रॉस ब्रीडिंग पालिसी (cross breeding policy) को ख़त्म कर दें। इस पालिसी के कारण भारत की कई स्वदेशी गायें पतन के कगार पर पहुंच गई हैं। आज भी भारत में यह क्रॉस ब्रीडिंग पालिसी (cross breeding policy) लागू है। प्रधानमंत्री जी आज भी भारत में अंग्रेजी गोवंश holstein friesian HF and jersey cows के सीमन और उनके एम्ब्रोज़ embryos लाए जा रहे हैं।
यह पालिसी देश में पिछले 70 सालों से चल रही है। इसी पॉलिसी के अंतर्गत अंग्रेजी गौवंश भारत में फल–फूल रहा है। अंग्रेजी गायों के कारण हमारा स्वदेशी गौवंश पतन के कगार पर पहुंच चुका है, अगर हमने आज अपने वर्तमान को नहीं संभाला तो भारत का भविष्य अंधकारमयी बन जायेगा। हमें क्रॉस ब्रीडिंग पॉलिसी (cross breeding policy) को भारत में बंद करने के लिए ठोस कदम उठाने होंगे। विदेशी नस्लों को भारत में बढ़ावा देने के लिए इस क्रॉस ब्रीडिंग पॉलिसी ने यहाँ बड़ा नेटवर्क बना रखा है।
Holstein Friesian (HF) और jersey cows का भारत में विस्तार :-
कैसी विडंबना है कि विदेशी लोगों के पास मात्र दो गायों की नस्लें थी जिनका नाम है होलिस्टन फ़्रिसियन holstein friesian (HF) और जर्सी गाय jersey cows है। इन विदेशियों ने लगभग 80-90 साल पहले यह मन बना लिया था उन्होंने इन नस्लों को पूरी दुनियां में फैलाना है और वो इसमें कामयाब भी हुए। आपको यह जानकर हैरानी होगी की 1915 के में इन दोनों अंग्रेजी गायों की नस्लों के दूध की पैदावार आज की देसी गायों की प्रजाति साहिवाल और थारपारकर से भी कम थी। लेकिन उन्होंने नस्ल सुधार पर कार्य किया जिससे उनकी इन दोनों नस्लों का दूध धीरे–धीरे बढ़ता गया। फिर उन्होंने इनका देशों–विदेशों में प्रचार करना शुरू कर दिया। सभी देश उनकी तरफ आकर्षित होने लगे। अंग्रेजी गोवंश की नस्लों को समुद्री जहाजों से दूसरे देशों में भेजा जाने लगा, ऐसे ही यह विदेशी गायें भारत में भी लाई गईं। भारत के सभी लोग इनकी तरफ आकर्षित हुए, किसान का भी इसकी तरफ आकर्षित होना स्वाभाविक था। उसी समय भारत में क्रॉस ब्रीडिंग पॉलिसी की शुरुआत हुई।
Cross Breeding Policy क्या है:-
क्याहै यह क्रॉस ब्रीडिंगपॉलिसी? इस पॉलिसी के अंतर्गत विदेशी नस्लों के नंदियों का सीमन भारत में लाया जाता है जिससे भारत की क्षेत्रीय देसी गायों को क्रॉस किया जाता है। उस समय जो लोग इस पॉलिसी को देश में लागू कर रहे थे वह यह सोच रहे थे कि क्षेत्रीय नस्लों की गायों का दूध बढ़ाने के लिए विदेशी नंदियों से भारत की स्वदेशी गायों को क्रॉस करवा दिया जाए। ऐसा करने से जो नस्ल पैदा होगी वह ज्यादा दूध देगी। उन्होंने क्रॉस ब्रीडिंग से पैदा हुई उन नस्लों को cross breed cows कहना शुरू कर दिया।
साहीवाल नस्ल की बर्बादी में CROSS BREEDING POLICY का योगदान :-
उस समय भारत के सभी प्रांतों में देसी गायों की अनेक नस्लें हुआ करती थी जिनमें दूध वाली नस्लों में साहिवाल का नाम पहले स्थान पर आता था। सबसे पहले क्रॉस ब्रीडिंग पालिसी का इस्तेमाल साहीवाल नस्ल को बर्बाद करने के लिए ही किया गया। साहीवाल नस्ल की अंधाधुंध क्रॉस ब्रीडिंग शुरू हो गई। साहीवाल के गर्भ से अब अंग्रेजी–देसी मिश्रित बछड़े–बछड़ियाँ पैदा होने लगे। जो उस समय की शुद्ध साहीवाल गायें थी उनको छोड़ दिया गया।
उस समय उनकी खास आवश्यकता महसूस नहीं हो रही थी। देश में क्रॉस ब्रीडिंग पालिसी को लागू करने की होड़ लगी हुई थी। विदेशी गायों के दूध की पैदावार को देख किसान ने अपने खूँटे पर बंधी देसी गाय को बड़ी निम्नन स्तर की समझ घर से बाहर निकाल दिया। किसान को ऐसा लगा कि देसी गौपालन घाटे का सौदा है, अंग्रेजी गाय देसी के मुकाबले ज्यादा दूध देती है, उससे मुनाफा ज़्यादा आएगा। किसान ऐसा इस लिए सोच रहा था क्यूंकि उसे ऐसा सोचने के लिए मजबूर किया जा रहा था।
विनाशकारी क्रॉस ब्रीडिंग पालिसी को लागू करने से पहले अंग्रेजी गौवंश रखने वालों से यह सवाल पूछने चाहिए थे –
- क्या अंग्रेजी गौवंश भारत की गर्मी को बर्दाश्त कर लेगा?
- क्या अंग्रेजी गौवंश के दूध का उत्पादन गर्मियों में भी उतना रह पायेगा जितना सर्दियों में होता है?
- क्या अंग्रेजी गौवंश देसी गायों जितना ही चारा खाएंगी?
- अंग्रेजी गौवंश का lactation period क्या रहेगा?
ऐसे और अनेक सवाल भारत के विशेषज्ञों और नीति निर्धारकों को अंग्रेजी गोवंश को लाने वालों के समक्ष रखने चाहिए थे। अंग्रेजी गायें भारत में आ चुकी थी और सब जगह उनको लेकर जाया जा रहा था। धड़ल्ले से अंग्रेजी गायों का प्रचार–प्रसार हो रहा था, हमारी स्वदेशी देसी गौवंश की गायें त्रिस्कारित की जा रही थी। जो कभी किसान के खूँटे पर महारानियों की तरह जीवन व्यतीत करती थी उसे अंग्रेजी गौवंश के आने पर घर से निकाल दिया गया था। वह बेचारी सड़क पर आ चुकी थी, सड़क से उसे गौशालाओं में लाया गया और वहां पर वो कई साल दया की पात्र बनी रही।
इसी दौरान कई और नस्लें भारत से सदा के लिए रुखसत हो गईं और ऐसी कई और हैं जो पतन के कगार पर खड़ी हैं। क्रॉस ब्रीडिंग पॉलिसी भारतीय स्वदेशी गायों को दीमक की तरह चाटती जा रही है।
स्वदेशी नारा आशा की नई किरण :-
प्रधानमंत्री जी आपके स्वदेशी के नारे से देसी गौपालन में एक नई आशा की किरण जगी है। अब देसी गायों का भविष्य उज्जवल है, अब उनका पतन नहीं होगा। अब वो फिर से महारानी बनकर किसान के घर में सुखद जीवन व्यतीत करेंगी। देसी गायों ने लगभग 80 साल का वनवास काटा है लेकिन अब इस वनवास के खत्म होने का समय आ चुका है, अब देसी गाय फिर से अपने राज्य सिंहासन पर बैठेंगी।
कामधेनु गौशाला का स्वदेशी नस्लों के संरक्षण में योगदान :-
प्रधानमंत्री जी हम आपको बताना चाहते हैं कि दिव्य ज्योति जाग्रति संस्थान की कामधेनु गौशाला पिछले 15 सालों से स्वदेशी गायों के उत्थान के लिए कार्य कर रही है। गुरुदेव सर्व श्री आशुतोष महाराजजी ने 15 साल पहले ही हमें स्वदेशी गोवंश की बची हुई नस्लों पर कार्य करने के आदेश दे दिए थे। कामधेनु गौशाला पंजाब की साहीवाल, राजिस्थान की राठी और थारपारकर, हरयाणा की हरयाणा नस्ल और गुजरात की गिर नस्ल को संरक्षित करने में लगी हुई है। आप की सरकार ने 2017 में कामधेनु गौशाला को उत्तर भारत की प्रथम गौशाला होने का पुरस्कार भी दिया है। कामधेनु गौशाला के प्रयास अभी समाप्त नहीं हुए। अभी तो बहुत कार्य शेष पड़े हैं। अभी तो भारत की सभी देसी गायों की प्रजातियों को उनके सही स्थान पर पहुंचाना है।
कामधेनु गौशाला ने पिछले कई सालों से दूध, पंचगव्य, गोबर, गोमूत्र की विशेषताओं को सोशल मीडिया, सेमिनार, लिटरेचर आदि के माध्यमों से लोगों के समक्ष रखा है।
स्वदेशी गायों का भारत में भविष्य उज्जवल है :-
प्रधानमंत्री जी आपके स्वदेशी नारे से देसी गायों के संरक्षण में बहुत बड़ी मदद मिलेगी। हम कामधेनु गौशाला की तरफ से पूरे भारत के गौपालकों, गौभक्तों को यह निवेदन करेंगे कि आप अपनी रफ्तार बढ़ा लें। भारत का भविष्य उज्जवल है, हम सभी स्वदेशी की बात करें, अपनी देसी गौ माता की बात करें। भारत की सभी देसी गायों की प्रजातियां स्वदेशी हैं। आज विदेशी वस्तुओं के त्याग के साथ–साथ विदेशी गायों का भी त्याग करें। प्रभु ने भारत भूमि पर अनेक देसी गायों की नस्लों को आशीर्वाद रूप में हमें प्रदान किया।
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Very good presentation.need of the hour. Quality milk for healthy India .
Thanks
हम भी भारत सरकार से आग्रह करेंगे कि क्रॉस ब्रीडिंग पॉलिसी को भारत से हटाया जाए और स्वदेशी गायों का संरक्षण किया जाए
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hum aapke vichar se sehmat hain .
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Thanks Murli ji